बरेली। समाजवादी पार्टी ने इस बार बरेली की विधानसभा सीट पर यादव बिरादरी से एक भी प्रत्याशी को टिकट नहीं दिया है। इतना ही नहीं संगठन में कोई बड़ी जिम्मेदारी नहीं दी। नीतिकार कहते हैं कि यादव और मुस्लिम वोट तो पार्टी का आधार है। अन्य बिरादरी पर विश्वास पार्टी को और मजबूत करेगा। अगर इस बार चुनाव में जीत मिलती है तो यह नया प्रयोग मिसाल के तौर पर काम करेगा।
अखिलेश यादव ने चुनावी जंग जीतने के लिए इस बार ‘नई हवा है नई सपा है’ के नारे को चरितार्थ करना शुरू कर दिया है। कुछ अपवादों को छोड़ दें तो संगठन में अभी तक यादव और मुस्लिम व्यक्ति ही जिम्मेदारी पाते आ रहे हैं। जिलाध्यक्ष यादव होगा तो महानगर अध्यक्ष मुस्लिम। यादव नेताओं ने ही पार्टी को इस मुकाम पर लाकर खड़ा किया कि वह सत्ता की दौड़ में शामिल है। वरिष्ठ यादव नेताओं ने पार्टी को जुझारू बनाने में दिन रात एक करके हर वर्ग में जनाधार बढ़ाया है। पार्टी में समाज के नेता भी गर्व से कहते आए हैं यह उनकी पार्टी है। पार्टी अध्यक्ष का नया प्रयोग समाज के लोगों के गर्व को चकनाचूर भी कर सकता है।
क्या कहते हैं पूर्व विधायक महिपाल सिंह यादव
आंवला के पूर्व विधायक महिपाल सिंह यादव कहते हैं कि यादव और मुस्लिम वोटर तो पार्टी का है ही। यह हमारा बेस वोट है। यह कहीं नहीं जा रहा है। पार्टी में दूसरी बिरादरी के लोग आने से उस वर्ग में भी अपना जनाधार बढ़ेगा। यह पार्टी के लिए बेहतर कदम है। इस बार हम सपा की सरकार बनाने जा रहे हैं। पार्टी में लोकतांत्रिक व्यवस्था है। यादव बिरादरी के वोटों की संख्या जिले के नौ विधानसभाओं में है।
अन्य जिलों में हो सकता है प्रयोग
बरेली में गंगापार यह संख्या बहुतायत में है। हर जिला एक दूसरे से जुड़ा है। यह जुड़ाव बरेली में बदायूं, कासगंज, एटा, बेल्ट में भी है। अभी तक हर जिले में यादव समाज का एक नेता संगठन में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी संभालते आ रहे हैं। इसका असर पड़ोसी जिले में भी होता है। अब बरेली से शुरू हुआ यह प्रयोग अन्य जिलों में भी हो सकता है।
दो लाख से ज्यादा हैं यादव वोटर
अनुमान के अनुसार जिले में यादव वोटरों की संख्या दो लाख से ज्यादा है। इनमें आंवला में लगभग 20 हजार, बिथरी चैनपुर में 28 हजार, फरीदपुर में 65 हजार, नवाबगंज में 10 हजार, भोजीपुरा में 15 हजार, बहेड़ी में सात हजार, मीरगंज में 15, कैंट में 18 और शहर में लगभग 15 हजार यादव वोटर हैं। पहली बार ऐसा हुआ है कि संगठन में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी किसी यादव नेता के पास नहीं है।
कई यादव नेताओं ने मांगा था वोट
जिले से कई यादव नेताओं ने विधानसभा चुनाव के लिए टिकट मांगा था लेकिन किसी को टिकट भी नहीं दिया गया है। जानकारों का कहना है कि अखिलेश यादव पुरानी परंपराओं से कुछ अलग करना चाहते हैं। इसके लिए उन्होंने यादवों की पार्टी के तमगे को हटाने के लिए पूरी व्यावसायिक सोच के साथ पार्टी में जनाधार बढ़ाने का काम किया है। सभी वर्ग के लोगों को सम्मान देकर यादव समाज को संकेत दिया है कि यह नई हवा है नई सपा है।