बरेली। बरेली जंक्शन पर उस वक्त अफरातफरी मच गई जब बंदर का बच्चा ओएचई लाइन में उलझकर चिल्लाने लगा। साथी बंदर की जान आफत में देख कई बंदरों ने जंक्शन घेर लिया। किसी की भी हिम्मत ओएचई लाइन पर चढ़कर बंदर को बचाने की नहीं हुई। अंत में भाजपा सांसद मेनका गांधी ने स्टेशन मास्टर को फोन कर रेलवे की ओएचई लाइन में करंट बंद कराया। इसके बाद पीएफए के रेस्क्यू प्रभारी धीरज पाठक ने बंदर को बचाया। रेस्क्यू के दौरान दर्जनों ट्रेनों को पिछले स्टेशनों पर रोकना पड़ गया।
शनिवार शाम को बरेली जंक्शन पर एक बंदर का बच्चा लाल रंग के कपड़े से खेल रहा था। कभी कपड़े को ओढ़कर घूमता तो कभी कुछ हरकत करता। कपड़े में एक बड़ा छेद था, जो उसकी कमर में जाकर फंस गया। वह कपड़ा ओएचई में फंसकर काफी टाइट हो गया। इससे बंदर ओएचई में लटकने लगा। बंदर की मां ने उसे लटकने से तो बचा लिया, लेकिन उसे कपड़े से अलग नहीं कर सकी। दोहपर 3:00 बजे लोगों ने प्लेटफॉर्म नंबर एक और दो के बीच ओएचई लाइन पर जब उस बंदर को देखा तो जीआरपी- आरपीएफ को सूचना दी। किसी तरह पीएफए के रेस्क्यू प्रभारी धीरज पाठक और विक्रम सिंह को भी मामले की जानकारी हुई। दोनों बिना देर किए जंक्शन पहुंच गए। स्टेशन मास्टर से ओएचई लाइन में दौड़ रहे करंट को बंद करने की मांग कर खुद बंदर का रेस्क्यू करने की बात कही। स्टेशन मास्टर के मना करने पर दोनों के बीच काफी झड़प हुई। सूचना मेनका गांधी तक पहुंची। उन्होंने मामले को गंभीरता से लेकर स्टेशन मास्टर से बात की और ओएचई सप्लाई बंद कराने को कहा। 40 मिनट तक ओएचई की सप्लाई ठप होने से माल गाड़ियां समेत कई एक्सप्रेस ट्रेनें शाहजहांपुर, तिलहर, फरीदपुर, मीरगंज आदि स्टेशनों पर रुक गईं। धीरज पाठक ने खुद ओएचई लाइन के स्टैंड पर चढ़कर उस बंदर के बच्चे को कपड़े के बंधन से मुक्त कराया। इसके बाद ट्रेनों का संचालन शुरू हो सका। इस दौरान शाम करीब 5:30 से 6:10 बजे तक जंक्शन पर ओएचई लाइन बन्द रही। जिसके कारण काशीविश्वनाथ, श्रमजीवी एक्सप्रेस समेत दर्जनों मालगाड़ी अप-डाउन की प्रभावित हुईं।
एकटक होकर रेस्क्यू ऑपरेशन देखते रहे बन्दर
अक्सर आपने देखा होगा कि जब भी कोई बंदर मुसीबत में होता है तो सभी बंदर एकजुट होकर हमला करते हैं लेकिन जंक्शन पर चले रेस्क्यू में बंदरों का रुख देखकर सभी यात्री भी हैरान थे। जब पीएफए की टीम बंदर के बच्चे को उतारने को ओएचई पर चढ़े तो सारे बंदर एक लाइन से बैठ गए। सभी चुप रहे किसी ने कोई हमला नहीं किया। करीब 15 से 30 मिनट में बंदर के बच्चे को उस कपड़े से अलग कर दिया गया। वह जाकर अपनी मां के सीने से जाकर चिपक गया। डर था कि कहीं बंदरों का झुंड यात्रियों पर हमला ना कर दे