न्यूज जंक्शन 24, बरेली। कारगिल युद्ध में भारत माता की रक्षा के लिए देश के कई वीरों ने अपने प्राणों की आहुति दी। इनमें मूल रूप से बिसौली के इटौआ गांव के जांबाज शहीद हरिओम सिंह का नाम भी शामिल है। उन्होंने कारगिल युद्ध के दौरान 1999 में अपने प्राण न्योछावर कर दिए थे। आज भी परिवार को उसके साहस और वीरता के तमाम किस्से याद आते हैं। उनकी पत्नी गुड्डों देवी ने बताया कि आज भी शहीद हरिओम के वर्दी और जूते संभाल कर रखे हैं। वर्दी, जूते और उनकी यादों ही उनको हौसला देती हैं।
उन्होंने बताया कि पढ़ाई के दौरान हरिओम सिंह में देश सेवा का जुनून सवार हो गया था। जाट रेजीमेंट सेंटर में सुबह टहलने के लिए वह पैदल जाते थे। जेआरसी का माहौल देखकर उन्होंने भी सेना में भर्ती होने का ख्वाब देखा। जबकि उनके पिता इस सपने के खिलाफ थे। फिर भी वह एनसीसी में भर्ती हुए। शादी के दो महीने बाद ही सेना में भर्ती हो गए। समर्पण, अनुशासन और बहादुरी को देखते हुए उनकी पदोन्नति हवलदार के पद पर हो गई।
सैनिक पद पर सेना में भर्ती होने वाले हरिओम सिंह में युद्ध कौशल जबरदस्त था। उधमपुर में ट्रेनिंग के दौरान वह करीब 40 किमी तक लगातार दौड़ लेते थे। जिसे देखकर उनका चयन भारतीय सेना की स्पेशल फोर्स में हो गया। फिर बंगलुरू पैराशूट रेजीमेंट 9 पारा एसएफ में उनकी तैनाती हुई। देश की रक्षा के लिए सेना में दी गई सेवाओं के लिए कई मेडल्स से उन्हें नवाजा गया था। उन्हें विशेष सेना मेडल, सियाचिन ग्लेशियर मेडल, हाई एटीट्यूड मेडल, विंड मेडल, 9 इयर्स लांग सर्विस मेडल, 50वीं इंडिपेंडेंट एनीवर्सरी मेडल मिले थे।
परिजनों के मुताबिक ऑपरेशन विजय में दुश्मनों से लड़ते हुए हरिओम सिंह को दाहिने हाथ और पैर में गोलियां लगी। टीम में 13 लोग ही थे, ऐसे में गोलियां लगने के बाद भी टीम कमजोर न हो यह सोचकर वहीं डटे रहे। आखिर में पाकिस्तान की गोलीबारी का सामना करते हुए वतन पर कुर्बान हो गए। कारगिल शहीद हरिओम सिंह की पत्नी गुड्डू देवी ने पति की स्मृतियों को सहेजकर रखने का हर संभव प्रयास किया। बदायूं स्थित पैतृक संपत्ति में मिली 4 बीघा जमीन में पार्क का निर्माण करवाया है। शहीद हरिओम सिंह की स्मारिका के तौर पर पार्क के बीच में मूर्ति भी लगवाई है।