हरिद्वार। कुंभ के दौरान कोरोना जांच में घपले की शिकायत की आंच अब प्रदेश के सभी निजी लैबों पर आ गई है। शासन ने प्रदेश की सभी प्राइवेट लैबों की जांच करने के आदेश दे दिए हैं। इससे निजी लैब संचालकों में हड़कंप मच गया है।
बता दें कि हरिद्वार कुंभ के दौरान केंद्र सरकार ने राज्य सरकार के लिए कोरोना की आरटीपीसीआर जांच का लक्ष्य निर्धारित किया था। राज्य सरकार ने इसकी जिम्मेदारी निजी लैबों को दे दी थी, मगर इस लक्ष्य को पूरा दिखाने के लिए बड़ा गड़बड़झाला कर दिया गया। पता चला कि कई जांचें फर्जी दिखा दी गई थीं। जिनके सैंपल लिए ही नहीं गए, उनके पास जांच रिपोर्ट भेज दी गईं और जांच कराने वालों को रिपोर्ट कभी मिली ही नहीं। मामला तब खुला, जब फरीदकोट (पंजाब) निवासी युवक ने आईसीएमआर से इसकी शिकायत की। यह बात सरकार तक पहुंची तो हड़कंप मच गया, जिसके बाद सरकार ने पूरे मामले की जांच के आदेश दे दिए । अब हरिद्वार जिला प्रशासन ने इसकी जांच शुरू कर दी है। इसके लिए सीडीओ सौरभ गहरवार की अध्यक्षता में समिति बनाई गई, जिसने शुक्रवार को जांच से संबंधित पत्रावलियों और दस्तावेजों का अध्ययन किया। साथ ही, स्वास्थ्य विभाग से संबंधित डाटा भी मांगा।
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वहीं, सरकार को अंदेशा है कि ऐसा केवल हरिद्वार ही नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश में गड़बड़ी की गई है, जिसके कारण सभी प्राइवेट लैब जांच के दायरे में आ गए हैं। अब शासन ने प्रदेश की सभी निजी लैबों की जांच के भी आदेश दे दिए हैं।
स्वास्थ्य विभाग भी सवालों के घेरे में
कोरोना जांच में घपले के आरोपों के बीच हरिद्वार जिले का स्वास्थ्य विभाग भी सवालों के घेरे में है। आरोप है कि बिना पर्याप्त मानव संसाधन और व्यवस्था के कैसे स्वास्थ्य विभाग ने 13 माह में 15 लाख 69 हजार कोरोना जांच की। जबकि पिछले साल अप्रैल से जुलाई तक स्वास्थ्य विभाग को कोरोना सैंपल भी जांच के लिए बाहर भेजने पड़ते थे। इनके कलेक्शन की रफ्तार भी बेहद धीमी थी, जो कई बार प्रतिदिन हजार से भी कम रहती थी। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर इस व्यवस्था और मामूली मानव संसाधन के कैसे इतनी जांच हो गई। सीएमओ हरिद्वार डा. एसके झा ने कोई भी जानकारी देने से मना कर दिया।