हल्द्वानी। विलुप्त हो रही वनस्पतियों को सहेजने और उन्हें संवारने को लेकर अपने नए-नए शोध और प्रयोगों के लिए पहचान रखने वाला उत्तराखंड वन अनुसंधान केंद्र ने अब एक और नया प्रयोग किया है। अनुसंधान केंद्र ने नैनीताल जिले के लालकुआं में तीन एकड़ क्षेत्रफल मेंं सुगंधित उद्यान खोला है।
इस उद्यान में 140 विभिन्न सुगंधित पौधों की प्रजातियां लगाई गई हैं। दावा है कि यह देश का पहला सुगंधित उद्यान यानी Aromatic Garden है। इस उद्यान का नाम सुरभि वाटिका रखा है। यहा तुलसी की 24 प्रजाति के पौधे भी रोपे गए हैं, जो विलुप्त के कगार पर हैं।
केंद्र के निदेशक संजीव चतुर्वेदी ने बताया कि उद्यान की स्थापना का मुख्य उद्देश्य तुलसी, अश्वगंधा पौधों को संरक्षित करना और इसके महत्व को लोगों को बताना है। इस उद्यान में कई राज्यों के सुगंध प्रजातियों के पौधों को रखा गया है। यहां देश-विदेश के तुलसी के 24 प्रजातियों के पौधे लाकर यहां पर संरक्षित किया गया है। यही नहीं, इन प्रजातियों के बारे में और अधिक शोध को बढ़ावा देने और भविष्य में स्थानीय लोगों की आजीविका से जोड़ने के लिए, केंद्र की कैंपा योजना के तहत परियोजना को वित्त पोषित किया गया है।
इन प्रजातियों की तुलसी बढ़ा रही सुंगध
राम तुलसी, श्याम तुलसी, वन तुलसी, कपूर तुलसी के साथ-साथ अफ्रीकी, इतालवी और थाई तुलसी शामिल हैं। सुगंधित उद्यान में तुलसी वाटिका के अलावा 8 अलग-अलग वर्ग हैं। सुगंधित पत्ते (नींबू बाम, मेंहदी, कपूर और विभिन्न टकसाल प्रजातियां), सुगंधित फूल (चमेली, मोगरा, रजनीगंधा, केवड़ा), सुगंधित पेड़ (चंदन, नीम चमेली, नागलिंगम, पारिजात), सुगंधित प्रकंद (आमा हल्दी, काली हल्दी), सुगंधित बीज ( कस्तूरी भिंडी, बड़ी इलाची, तैमूर, अजवाइन), सुगंधित घास (नींबू घास, जावा घास, खास घास), सुगंधित बल्ब (लाल अदरक, रेत अदरक) और सुगंधित जड़ें (पत्थरचूर, वच)। दक्षिण भारत से चंदन, उत्तर पूर्व से अगरवुड, तटीय क्षेत्रों से केवड़ा और तराई क्षेत्र से पारिजात, इसके अलावा नीम चमेली, हजारी मोगरा, सोंटाका, कहमेली, रात की रानी, दिन का राजा और अनंत कुछ सबसे सुगंधित लोकप्रिय प्रजातियां हैं।
सुगंधित उद्यान में मौजूद
इसमें जैस्मीन की 9 अलग-अलग प्रजातियां, पुदीने की 4 अलग-अलग प्रजातियां, हल्दी की 4 अलग-अलग प्रजातियां और अदरक की 3 अलग-अलग प्रजातियां है। इन सुगंधित पौधों के अर्क का उपयोग सौंदर्य प्रसाधनों में स्वाद और सुगंध के प्रयोजनों के लिए किया जाता है। इसी तरह, ये पौधे मसालों, कीटनाशकों और विकर्षक बनाने में बहुत उपयोगी है।
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