किसान आंदोलन : कहां फंसा था पेच, कहां झुकी सरकार, कितना नरम पड़े किसान

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न्यूज जंक्शन 24, नई दिल्ली। किसान आंदोलन (Farmers protest) की जब शुरुआत हुई थी, तब तीन बड़े मुद्दों कानून वापसी, एमएसपी और पराली जलाने के मुद्दे पर गतिरोध बना हुआ था। एक साल बीतते-बीतते किसानों के उठाए मुख्य मुद्दों की संख्या बढ़कर सात हो गई। इनमें से छह मांगों पर सरकार की तरफ से लिखित प्रस्ताव मिलने के बाद संयुक्त किसान मोर्चा ने आंदोलन (Farmers protest) स्थगित करने का फैसला किया है। 11 दिसंबर से किसानों की दिल्ली की सरहदों से वापसी शुरू होगी। हालांकि, 15 जनवरी को संयुक्त किसान मोर्चा की समीक्षा बैठक होगी, जिसमें किसान नेता (Farmers protest) आगे की रणनीति तय करेंगे। जानते हैं कि किन मुद्दों पर पेंच फंसा था और किन मांगों पर सरकार झुकी या किसानों ने नरम रुख अपनाया…

मांग 1 : तीन कृषि कानून

किसानों की मांग: सरकार ने सितंबर 2020 में तीन कृषि बिल संसद से पारित कराए थे। किसान शुरू से इसका विरोध कर रहे थे। उनका कहना था कि तीनों कानून किसानों के हित में नहीं हैं।

सरकार का फैसला: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरु नानक जयंती के मौके पर देश को संबोधित किया और तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का एलान कर दिया। प्रधानमंत्री का कहना था कि सरकार इन कानूनों के फायदों के बारे में किसानों को समझा पाने में विफल रही।

मांग 2 : एमएसपी

किसानों की मांग: किसानों ने संशय जताया था कि तीन कृषि कानून आने के बाद कहीं सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी MSP बंद न करे। MSP जारी रहेगी, इसके लिए किसान लिखित गारंटी चाहते थे। हालांकि, बाद में किसानों ने नरम रुख अपनाया और कमेटी बनाने की सरकार की पेशकश मान ली।

सरकार का फैसला: प्रधानमंत्री और कृषि मंत्री ने एक कमेटी बनाने की घोषणा की। इस कमेटी में केंद्र सरकार, राज्य सरकार, किसान संगठनों के प्रतिनिधि और कृषि वैज्ञानिक शामिल होंगे। किसानों के प्रतिनिधियों में संयुक्त किसान मोर्चा के नेता भी शामिल रहेंगे। सरकार MSP पर खरीद जारी रखेगी। यह कमेटी तय करेगी कि देश में किसानों को MSP मिलना हमेशा के लिए किस तरह सुनिश्चित किया जाए।

मांग 3 : किसानों पर दर्ज मुकदमे

किसानों की मांग: एक साल चले किसान आंदोलन के दौरान दिल्ली और अलग-अलग राज्यों में किसानों पर मुकदमे दर्ज किए गए। किसानों की मांग थी कि ये भी मुकदमे वापस लिए जाएं।

सरकार का फैसला: सरकार पहले इस बात पर अड़ी थी कि आंदोलन वापस लेने पर मुकदमे वापस हो जाएंगे। बाद में सरकार झुकी और उसने किसान मोर्चा को भेजे अपने प्रस्ताव में कहा कि उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, मध्यप्रदेश और हरियाणा सरकार ने मुकदमे वापस लेने पर सहमति दे दी है। केंद्र सरकार से जुड़ी एजेंसियों या केंद्र शासित प्रदेशों में किसानों पर आंदोलन (Farmers protest)के दौरान दर्ज हुए मुकदमे भी वापस लिए जाएंगे।

मांग 4 : 700 किसानों की मौत

किसानों की मांग: किसानों का कहना है कि आंदोलन के दौरान 700 किसान शहीद हुए हैं। उनके परिवार के सदस्यों को मुआवजा मिलना चाहिए।

सरकार का फैसला: सरकार ने संसद में एक सवाल में जवाब में कहा था कि आंदोलन के दौरान कितने किसानों की मौत हुई, इसका कोई आंकड़ा सरकार के पास नहीं है। हालांकि, किसानों को भेजे प्रस्ताव में सरकार ने कहा कि मुआवजा देने के लिए हरियाणा और उत्तर प्रदेश सरकार ने सैद्धांतिक मंजूरी दे दी है। पंजाब सरकार भी मुआवजे की घोषणा कर चुकी है।

मांग 5 : बिजली बिल

किसानों की मांग: किसानों का कहना था कि बिजली संशोधन बिल से किसानों को बिजली दरों में मिल रही सब्सिडी खत्म हो जाएगी। यह किसानों के विरोध में है।

सरकार का फैसला: किसानों पर असर डालने वाले प्रावधानों पर संयुक्त किसान मोर्चा और अन्य साझेदारों से चर्चा होगी। चर्चा के बाद ही बिल संसद में पेश किया जाएगा।

मांग 6 : पराली जलाना

किसानों की मांग: पराली जलाना अपराध के दायरे में था। यह कदम किसान विरोधी है।

सरकार का फैसला: नवंबर में कृषि मंत्री ने एलान किया कि अब पराली जलाना अपराध की श्रेणी में नहीं रहेगा। सरकार ने साफ किया है कि पराली से जुड़े कानून की धारा 14 और 15 में से किसानों की जवाबदेही तय करने वाली बात हटा दी गई है।

मांग 7 : लखीमपुर खीरी की घटना

किसानों की मांग: लखीमपुर खीरी के तिकुनिया में तीन अक्टूबर को भड़की हिंसा में आठ लोगों की मौत हो गई थी। आरोप था कि केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे आशीष की कार ने किसानों को रौंद दिया। किसानों का कहना था कि इस मामले में इंसाफ होना चाहिए। केंद्रीय मंत्री को बर्खास्त किया जाना चाहिए।

सरकार का फैसला: सरकार ने इस बारे में साफ तौर पर कुछ नहीं कहा है। हालांकि, इस मामले में उत्तर प्रदेश में जांच चल रही है।

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