करवाचौथ का व्रत सुहागिन महिलाओं का प्रमुख पर्व माना जाता है, जो इस बार 17 अक्तूबर को मनाया जाएगा। यह व्रत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष में चंद्रोदय व्यापिनी चतुर्थी को किया जाता है। 17 अक्तूबर को चंद्रोदय व्यापिनी चतुर्थी तिथि सुबह 6:48 बजे के बाद आरम्भ होगी। इस दिन कृतिका नक्षत्र दोपहर 3:52 बजे तक रहेगा। इसके बाद रोहिणी नक्षत्र प्रारम्भ होगा, जोकि पूर्ण रात्रि रहेगा।
इस बार की विशेष बात चंद्रमा का वृष राशि एवं रोहिणी नक्षत्र में उदय होना और सौंदर्य प्रदाता, विलासिता पूर्ण ग्रह शुक्र का भी युवावस्था में अपनी तुला राशि में विराजमान होना है। साथ ही तुला की 45 मुहूर्ती संक्रांति होने और गुरुवार होने से गुरु बृहस्पति की भी विशेष कृपा रहेगी। यह सब ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस चंद्रोदय में दाम्पत्य सुख एवं प्रेम को बढ़ाते हैं।
ज्योतिष के अनुसार रोहिणी नक्षत्र का स्वामी चंद्रमा है। इस दौरान चंद्रमा स्वयं अपनी उच्च राशि वृष में उदय होने के कारण हर्षोल्लास देगा। यूं तो प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को गणेशजी एवं चंद्रमा का व्रत किया जाता है, लेकिन इसमें सर्वाधिक महत्व है करवाचौथ व्रत का। इस दिन सौभाग्यवती स्त्रियां अटल सुहाग, पति की दीर्घायु और उसके अच्छे स्वास्थ्य के लिए व्रत रखती हैं। यह व्रत सौभाग्य एवं शुभ संतान देने वाला होता है। इस दिन चंद्र देवता की पूजा के साथ शिव-पार्वती और स्वामी कार्तिकेय की भी पूजा की जाती है। शिव-पार्वती की पूजा का विधान इसलिए है कि जिस प्रकार पार्वती ने घोर तपस्या करके भगवान शंकर को प्राप्त कर अखंड सौभाग्य प्राप्त किया, वैसे ही उन्हें भी प्राप्त हो। इस दिन कुंवारी कन्याएं गौरा देवी का पूजन करती हैं। महाभारत काल में पांडवों की रक्षा हेतु द्रौपदी ने यह व्रत किया था।
पूजन की विधि
व्रती स्त्रियों को सुबह स्नानादि के बाद पति, पुत्र, पौत्र और सुख-सौभाग्य की कामना का संकल्प लेकर यह व्रत करना चाहिए। इस व्रत में शिव-पार्वती, कार्तिकेय, गणेश और चंद्रमा का पूजन करके अर्घ्य देकर ही जल, भोजन ग्रहण करना चाहिए। चंद्रोदय से कुछ समय पूर्व मिट्टी से शिव, पार्वती, कार्तिकेय और चंद्रमा की छोटी-छोटी मूर्तियां बनाकर या करवाचौथ का चित्र लगाकर पानी से भरा लोटा और करवा रखकर करवाचौथ की कहानी सुनी जाती है। कहानी सुनने से पूर्व करवे पर रोली से सतिया बनाकर उसपर रोली से 13 बिंदियां लगाई जाती हैं। हाथ में गेहूं के 13 दाने लेकर कथा सुनी जाती है और चांद निकल आने पर उसे अर्घ्य देकर स्त्रियां भोजन करती हैं।
पूजा स्थल पर सजाते हैं रंगोली
चंद्रमा निकलने से पूर्व पूजा स्थल रंगोली से सजाया जाता है और एक करवा टोटीदार उरई की पांच या सात सीक डालकर रखा जाता है। करवा मिट्टी का होता है। यदि पहली बार करवाचौथ चांदी या सोने के करवे से पूजा जाए तो हर बार उसी की पूजा होती है, फिर रात्रि में चंद्रमा निकलने पर चंद्र दर्शन कर अर्घ्य दिया जाता है। चंद्रमा के चित्र पर निरंतर धार छोड़ी जाती है और सुहाग व समृद्धि की कामना की जाती है। पति और बजुर्गों के चरणस्पर्श कर बने हुए पकवान प्रसाद में चढ़ाए जाते हैं। व्रत पूर्ण होने पर उसका प्रसाद पाते हैं। गौरी माता सुहाग की देवी हैं। अतएव उनके द्वारा निर्दिष्ट यह व्रत भारतीय महिलाओं की श्रद्धा का केंद्र बिंदु है। जिस वर्ष लड़की की शादी होती है, उस वर्ष उसके घर से 14 चीनी के करवों, बर्तनों, कपड़ों आदि के साथ बायना भी दिया जाता है। अन्य व्रतों के साथ इस करवाचौथ व्रत का उजमन किया जाता है, इसमें 13 सुहागिनों को भोजन कराने के बाद उनके माथे पर बिंदी लगाकर और सुहाग की वस्तुएं एवं दक्षिणा देकर विदा कर दिया जाता है।