समान नागरिक संहिता में जस के तस रहेंगे धार्मिक रीति-रिवाज

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उत्तराखंड में देश का पहला समान नागरिक संहिता (यूसीसी) विधेयक लागू हो गया है, जिसे लेकर कई महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं। इस विधेयक में किसी विशेष धर्म का उल्लेख नहीं किया गया है, लेकिन इसका उद्देश्य समाज में रूढ़िवादिता, परंपराओं और प्रथाओं को समाप्त करना है। खासतौर पर, इस बिल में इद्दत और हलाला जैसे प्रथाओं का प्रत्यक्ष रूप से उल्लेख नहीं किया गया है, लेकिन एक विवाह के बाद दूसरे विवाह को पूरी तरह से अवैध करार दिया गया है।

यूसीसी विधेयक में विवाह, तलाक, विरासत और गोद लेने से जुड़े मामलों को शामिल किया गया है, जबकि इन विषयों से संबंधित प्रावधानों में किसी भी धर्म, जाति या पंथ की परंपराओं और रीति-रिवाजों में कोई बदलाव नहीं किया गया है। इसके तहत वैवाहिक प्रक्रिया में धार्मिक मान्यताओं को किसी भी तरह से प्रभावित नहीं किया जाएगा। शादी की प्रक्रिया, चाहे वह हिंदू रीति-रिवाजों से हो या मुस्लिम परंपरा से, जस की तस रहेगी। पंडित या मौलवी के द्वारा शादी कराना पहले की तरह संभव रहेगा, और खानपान, पूजा-इबादत, वेश-भूषा पर भी कोई असर नहीं पड़ेगा।

इस कानून के तहत 26 मार्च 2010 के बाद हुए विवाहों का पंजीकरण अनिवार्य होगा, जबकि इससे पहले जिन विवाहों का पंजीकरण नहीं हुआ है, उन्हें छह माह के भीतर पंजीकरण कराना होगा। जो पहले से पंजीकृत विवाह हैं, उन्हें छह माह के भीतर सब रजिस्ट्रार कार्यालय में घोषणा पेश करनी होगी।

इस नए कानून के तहत, यदि विवाह के पंजीकरण में गलत जानकारी दी जाती है, तो 25 हजार रुपये का जुर्माना लगेगा। साथ ही, पंजीकरण न कराने पर 10 हजार रुपये का जुर्माना भी होगा। खास बात यह है कि यदि विवाह करने वाले में से कोई व्यक्ति राज्य का निवासी है, तो उसका पंजीकरण अनिवार्य होगा। 2010 के बाद के विवाहों के लिए यह प्रक्रिया पूरी करनी होगी, जबकि पहले के विवाहों को भी पंजीकरण का अवसर दिया गया है, बशर्ते एक से अधिक जीवनसाथी न हों और आयु मानक पूरा हो।