उत्तराखंड में वन भूमि पर अतिक्रमण के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार और उसके अधिकारियों को कड़ी फटकार लगाई है। राज्य निवासी अनीता कंडवाल की याचिका पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि वन भूमि पर हो रहे अवैध कब्जों के बावजूद राज्य सरकार और प्रशासन “मूक दर्शक” बने हुए हैं। इस गंभीर स्थिति को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए मामले की सुनवाई शुरू की।
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्य बागची की वेकेशन बेंच ने उत्तराखंड के मुख्य सचिव को निर्देश दिया कि वे राज्य में वन भूमि पर हुए अतिक्रमण की जांच के लिए एक तथ्य-अन्वेषण समिति (फैक्ट फाइंडिंग कमेटी) का गठन करें और विस्तृत रिपोर्ट अदालत में पेश करें।
पीठ ने टिप्पणी करते हुए कहा कि यह बेहद चौंकाने वाला है कि राज्य सरकार और उसके अधिकारी अपनी आंखों के सामने वन भूमि पर अतिक्रमण होते देख रहे हैं, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं कर रहे। इसी वजह से अदालत ने इस मामले में स्वतः संज्ञान लिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिए कि मामले की जांच पूरी होने तक निजी पक्ष किसी भी तरह से तीसरे पक्ष का अधिकार नहीं बनाएंगे और वन भूमि पर किसी भी प्रकार का निर्माण कार्य नहीं किया जाएगा।
अदालत ने यह भी कहा कि जिन जगहों पर अतिक्रमण है और जो खाली पड़ी हैं, वहां वन विभाग तत्काल कब्जा लेगा। हालांकि, रिहायशी मकानों को इस आदेश से अलग रखा गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने छुट्टियों के बाद अदालत खुलने पर सोमवार को इस मामले की अगली सुनवाई तय की है। यह मामला उत्तराखंड में वन भूमि के बड़े हिस्से पर हुए कथित अवैध कब्जों से जुड़ा हुआ है, जिस पर अब शीर्ष अदालत की कड़ी नजर है।



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