नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने प्रमोशन में उचित उम्मीदवार के चयन को लेकर एक बेहद अहम फैसला सुनाया। शीर्ष अदालत ने कहा कि समान श्रेणी के दावेदारों का वर्गीकरण करने के लिए शैक्षिक योग्यता एक वैध आधार है। ऐसा करने पर संविधान के अनुच्छेद-14 या 16 का उल्लंघन नहीं होता है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि शैक्षिक योग्यता का उपयोग एक निश्चित श्रेणी के दावेदारों के लिए प्रोन्नति में आरक्षण व्यवस्था शुरू करने के लिए किया जा सकता है। प्रोन्नति को पूरी तरह एक श्रेणी तक सीमित करने में भी इसका उपयोग हो सकता है। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने कहा कि वर्गीकरण के मामलों में न्यायिक समीक्षा इस बात के निर्धारण तक सीमित है कि वर्गीकरण उचित है या नहीं और उससे संबंधित है या नहीं, जिसकी मांग की गई थी। अदालत वर्गीकरण के आधार के गणितीय मूल्यांकन में शामिल नहीं हो सकती।
इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाईकोर्ट के उस निर्णय को भी बरकरार रखा है, जिसमें कोलकाता नगर निगम के 3 जुलाई, 2012 के एक सर्कुलर को वैध घोषित किया गया था। इस सर्कुलर में डिप्लोमा और डिग्रीधारक सब असिस्टेंट इंजीनियरों (एसएई) के लिए असिस्टेंट इंजीनियर (एई) पद पर प्रोन्नति की अलग-अलग शर्तें तय की गई थीं। शीर्ष अदालत ने कहा, यह मानते हुए कि नगर निगम के अतिरिक्त पदों के लिए प्रोन्नति नीति तर्कहीन या मनमानी नहीं है और न ही इसकी मंशा डिप्लोमाधारक एसएई की हानि के लिए है।
पीठ ने कहा, सार्वजनिक नीति और सार्वजनिक रोजगार के मामलों में, विधायिका या उसके प्रतिनिधि को अलग-अलग पदों पर नियुक्त करने वाले व्यक्तियों की गुणवत्ता तय करने के लिए पर्याप्त मौका देना चाहिए। न्यायालय को तब तक नीति के मामले में हस्तक्षेप से बचना चाहिए, जब तक ये निर्णय मनमाने नहीं होते। पीठ ने शीर्ष अदालत के पुराने निर्णयों का हवाला देते हुए कहा, सामान्यतया, शैक्षिक योग्यता पदोन्नति के मामलों में एक ही वर्ग के व्यक्तियों के बीच वर्गीकरण के लिए एक वैध आधार है और यह संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन नहीं है।
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