न्यूज जंक्शन 24 डेस्क, नैनीताल। supreem court (सुप्रीम कोर्ट) ने चेक बाउंस को लेकर की निर्देश जारी किए हैं। देश में चेक बाउंस के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं और इन मामलों को निपटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने कुछ निर्देश दिए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस बारे में केंद्र सरकार से उस कानून में सुधार करने को कहा है कि जो चेक बाउंस से जुड़ा है।
सुप्रीम कोर्ट का निर्देश है कि किसी व्यक्ति के खिलाफ एक साल में लेनदेन से जुड़े जितने मामले हैं, जो चेक बाउंस से जुड़े हों, उनका निपटान एक साथ किया जाए ताकि मामलों की सुनवाई में तेजी आए। अब यह भी निर्देश है कि चेक बाउंस मामले में गवाह को कोर्ट में बुलाने की जरूरत नहीं है और सबूत को हलफनामा के तौर पर दायर किया जा सकता है। देश में लगभग 35 लाख मामले चेक बाउंस से जुड़े हैं जिन्हें निपटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से अतिरिक्त अदालतें बनाने के लिए कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने सभी हाईकोर्ट से चेक बाउंस मामलों को निपटाने के लिए निचली अदालतों को निर्देश देने के लिए कहा है।
चेक बाउंस क्या होता है
मान लीजिए किसी ने पेमेंट के लिए आपको चेक दिया है। आप उस चेक को बैंक में डालते हैं। ऐसी स्थिति में जरूरी है कि जितने रुपये का चेक दिया गया है, चेक देने वाले व्यक्ति के खाते में उतनी राशि होनी चाहिए। अगर ऐसा नहीं होता है तो चेक बाउंस हो जाता है। यानी कि जितने रुपये का चेक दिया, उतनी रकम बैंक अकाउंट में नहीं है. बैंक की भाषा में इसे dishonored cheque कहते हैं।
चेक रिटर्न मेमो क्या है
जब चेक बाउंस होता है तो उस बैंक की तरफ से एक परची दी जाती है जिसे चेक रिटर्न मेमो कहते हैं। यह परची पेयी के नाम होती है जिसने चेक जारी किया है। इस परची पर चेक बाउंस होने की वजह लिखी होती है। इसके बाद चेक होल्डर या पेयी के सामने 3 महीने का टाइम होता है जिसमें उसे दूसरी बार चेक जमा करना होता है। अगर दुबारा चेक बाउंस हो जाए तो पेयी के सामने चेक जारी करने वाले के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने का अधिकार होता है.
सिविल कोर्ट में मुकदमा
इसके तहत चेक जारी करने वाले को नोटिस भेजा जाता है और 15 दिन के अंदर पैसा देने को कहा जाता है. अगर 15 दिन में पैसा मिल जाए तो मामला सुलझ जाता है. अगर ऐसा नहीं होता तो यह मामला कानूनी प्रक्रिया में ले जा सकते हैं. इसके लिए चेक देने वाले के खिलाफ निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट 1881 की धारा 138 के तहत सिविल कोर्ट में केस दर्ज कर सकते हैं. इसमें आरोपी को 2 साल की जेल और जुर्माने का प्रावधान है. जुर्माने की राशि चेक की राशि से दुगनी हो सकती है.
आईपीसी में भी करें केस
चेक बाउंस होने पर इसका केस आईपीसी की धारा 420 के तहत भी कर सकते हैं. यानी कि चेक बाउंस का मामला सिविल के अलावा क्रिमिनल कोर्ट में भी कर सकते हैं. आईपीसी की धारा 420 के तहत यह साबित करना होता है कि चेक जारी करना और अकाउंट में पैसे नहीं रखना एक तरह से बेइमानी के इरादे से किया गया. अगर यह केस साबित हो जाए तो आरोपी को 7 साल की सजा और जुर्माना हो सकता है. सिविल केस में हालांकि एक सुविधा यह मिलती है कि कोर्ट चाहे तो पीड़ित पक्ष को शुरू में कुछ पैसे दिलवा सकता है या इसका निर्देश दे सकता है.