न्यूज जंक्शन 24, नई दिल्ली। भारतीय रेलवे ने आज एक नया मुकाम हासिल किया है। रेलवे ने अपने आत्मनिर्भर भारत के तहत ईजाद किए नए तकनीक से शुक्रवार को दो ट्रेनों को कुछ सौ मीटर के फासले से एक-दूसरे से भिड़ने से रोक दिया। यह संभव हुआ रेलवे की नई स्वदेशी सुरक्षा तकनीक ‘कवच’ (Kavach) से।
इस इतिहास के साक्षी खुद रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव बने। कवच ने सामने से आ रही ट्रेन की भिड़ंत से पूर्व रेल मंत्री की ट्रेन को 380 मीटर पहले ही रोक दिया। तेलंगाना के सिकंदराबाद में ट्रेनों के बीच इस कवच का परीक्षण किया गया। एक ट्रेन के इंजन पर रेल मंत्री वैष्णव सवार थे तो सामने से आ रही दूसरी ट्रेन पर रेलवे बोर्ड के चेयरमैन व अन्य बड़े अधिकारी। यह परीक्षण सनतनगर-शंकरपल्ली खंड पर किया गया।
रेल मंत्री ने इस परीक्षण (Kavach) का एक मिनट का वीडियो साझा किया है। इसमें इंजन के केबिन में रेल मंत्री वैष्णव व अन्य अधिकारी दिखाई दे रहे हैं। रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने ट्वीट किया, ‘रियर-एंड टक्कर परीक्षण सफल रहा है। कवच ने अन्य लोको से 380 मीटर पहले लोको को स्वचालित रूप से रोक दिया’। बता दें कि इस तकनीक के अमल की घोषणा बजट में की गई थी। ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान के तहत दो हजार किलोमीटर के रेलवे नेटवर्क को कवच (Kavach) तकनीक के दायरे में लाया जाएगा। अब तक, दक्षिण मध्य रेलवे की चल रही परियोजनाओं में कवच को 1098 किमी से अधिक मार्ग और 65 इंजनों पर लगाया जा चुका। यह तकनीक दिल्ली-मुंबई और दिल्ली हावड़ा कॉरिडोर पर लागू करने की योजना है। इस रूट की लंबाई करीब 3000 किलोमीटर है।
Rear-end collision testing is successful.
Kavach automatically stopped the Loco before 380m of other Loco at the front.#BharatKaKavach pic.twitter.com/GNL7DJZL9F— Ashwini Vaishnaw (@AshwiniVaishnaw) March 4, 2022
क्या है कवच तकनीक
कवच (Kavach) ऐसी स्वदेशी तकनीक है, जिसके इस्तेमाल से दो ट्रेनों की टक्कर रोकी जा सकेगी। यह दुनिया की सबसे सस्ती रेल सुरक्षा तकनीक है। ‘जीरो ट्रेन एक्सीडेंट’ के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए इस कवच का विकास किया गया है। जब कवच के डिजिटल सिस्टम को रेड सिग्नल या फिर किसी अन्य खराबी जैसी कोई मैन्युअल गलती दिखाई देती है, तो इस तकनीक के माध्यम से संबंधित मार्ग से गुजरने वाली ट्रेन अपने आप रुक जाती है। इस तकनीक को लागू करने के बाद इसके संचालन में 50 लाख रुपये प्रति किलोमीटर का खर्च आएगा। जो दूसरे देशों की तुलना में बहुत सस्ता है। दुनिया भर में ऐसी तकनीक पर करीब दो करोड़ रुपये का खर्च आता है। इस तकनीक में जब ऐसे सिग्नल से ट्रेन गुजरती है, जहां से गुजरने की अनुमति नहीं होती है तो इसके जरिए खतरे वाला सिग्नल भेजा जाता है। लोको पायलट अगर ट्रेन को रोकने में विफल साबित होता है तो फिर ‘कवच’ तकनीक के जरिए से अपने आप ट्रेन के ब्रेक लग जाते हैं और हादसे से ट्रेन बच जाती है। यह तकनीक हाई फ्रीक्वेंसी रेडियो कम्युनिकेशन पर काम करती है। साथ ही यह SIL-4 (सिस्टम इंटिग्रेटी लेवल-4) की भी पुष्टि करती है। यह रेलवे सुरक्षा प्रमाणन का सबसे बड़ा स्तर है।
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