उत्तराखंड विधानसभा के बजट सत्र के पांचवे दिन शनिवार को कार्यवाही शुरू होते ही संसदीय कार्य मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल द्वारा पहाड़ मैदान पर दिए गए बयान को लेकर हंगामा मच गया। विपक्षी विधायकों ने तीखी प्रतिक्रिया दी, जिसमें बदरीनाथ से विधायक लखपत बुटोला ने यह कहते हुए नाराजगी जताई कि पहाड़ गालियां सुनने के लिए नहीं बने हैं, और गुस्से में आकर उन्होंने सदन में कागज फाड़ दिए।
संसदीय कार्य मंत्री के बयान पर उठा विवाद: देहरादून में चल रहे उत्तराखंड के बजट सत्र के पांचवे दिन वही विवाद फिर से सामने आया, जो पिछले दिन हुआ था। कल नियम 58 पर चर्चा के दौरान प्रेमचंद अग्रवाल ने पहाड़ मैदान पर विवादित बयान दिया था, जिससे शनिवार को सदन में हंगामा शुरू हो गया। नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्या ने मंत्री के बयान पर विरोध जताया, जिस पर प्रेमचंद अग्रवाल ने कहा कि उन्होंने वह शब्द नहीं कहे थे, जिनकी बात हो रही थी, लेकिन यह बयान विवाद को और बढ़ा गया।
इस दौरान, प्रेमचंद अग्रवाल अपना पक्ष रखने के लिए खड़े हुए, लेकिन किसी भी मंत्री ने उनका समर्थन नहीं किया। उनके बगल में बैठे धन सिंह रावत, सुबोध उनियाल और सतपाल महाराज भी चुप रहे और उनकी तरफ से कोई समर्थन नहीं आया। इस स्थिति ने विपक्ष को और अधिक मौका दिया अपनी बात रखने का।
निर्दलीय विधायक उमेश कुमार ने भी इस मुद्दे पर अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड के पहाड़ से आने वाले लोग देश के महत्वपूर्ण पदों पर हैं और यह राज्य उनके लिए है। उन्होंने मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल से माफी की मांग की, क्योंकि उनके शब्द पहाड़वासियों का अपमान कर रहे थे। इसके बाद कांग्रेस विधायक प्रीतम सिंह और बदरीनाथ विधायक लखपत बुटोला ने भी इसे लेकर कड़ी आपत्ति जताई।
लखपत बुटोला ने गुस्से में आकर कहा, “क्या हम पहाड़ के विधायक गालियां खाने के लिए यहां आए हैं?” उन्होंने सदन में मौजूद विधायकों से अपील की कि वे अपने क्षेत्र में जाकर लोगों का गुस्सा महसूस करें। बुटोला ने कहा कि जनता कह रही है कि विधायक विधानसभा में सिर्फ गालियां खाने के लिए आते हैं।
इस पर विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी ने गुस्से में आकर कहा कि इस सदन को राजनीति का अड्डा न बनाएं। उन्होंने बुटोला से अपील की कि वह मामले को शांत करें। फिर भी बुटोला ने कहा कि यदि पहाड़ के लोगों को इस सदन में अपमानित किया जाएगा तो वह नहीं रह सकते। इस पर अध्यक्ष ने उन्हें कहा कि यदि उन्हें ऐसा ही लगता है तो वे सदन से बाहर जा सकते हैं। इसके बाद बुटोला ने कागज फाड़ते हुए सदन से बाहर जाने का फैसला किया और अपने दल से अलग बैठ गए।



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