न्यूज जंक्शन 24, नई दिल्ली। कोरोना ने बीते दो सालों में लाखों लोगों से उनके अपने बिछड़ गए। जो लोग इस दुनिया से चले गए, उनका परिवार भारी सदमे से गुजर रहा है। सरकार की ओर से उन्हें 50 हजार मुआवजे का एलान किया गया है लेकिन यहां भी कुछ लोग बेइमानी करने से बाज नहीं आ रहे। इधर कई मामले सामने आए हैं, जिन्होंने फर्जी डेथ सर्टिफिकेट (fake death certificate) बनाकर मुआवजे की राशि हड़प ली। इससे जो लोग वास्तविक हकदार हैं, उनका हक मारा जा रहा है। इस मामले को लेकर अब सुप्रीम कोर्ट ने सख्त नराजगी जताई है और ऐसे लोगों के खिलाफ जांच एजेंसी के गठन का संकेत दिया है।
भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को दिए आंकड़ों में बताया कि अब तक अब तक कोविड से हुए मौत के बाद 6 लाख लोगों को 50-50 हजार रुपये मुआवजा दिया गया है। कोविड डेथ से संबंधित अब तक 8 लाख दावे किए गए हैं। यह आंकड़ा राज्यों द्वारा कोविड से हुए मौत के आंकड़े से कहीं अधिक है। मामले की सुनाई के दौरान सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि कोरोना से होने वाली मौत के मामले में आश्रित परिजनों को मुआवजा देने में दिक्कत आ रही है, क्योंकि कई लोग फर्जी सर्टिफिकेट (fake death certificate) बनाकर मुआवजे का दावा कर रहे हैं।
तुषार मेहता ने कहा कि डॉक्टर अन्य कारणों से हुई मौत को भी कोरोना से हुई मौत बताते हुए नकली प्रमाणपत्र दे रहे हैं। इस बात पर कड़ी आपत्ति जताते हुए जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागारथना ने कहा कि डॉक्टरों द्वारा फेक सर्टिफिकेट (fake death certificate) दिए जाने से हम चिंतित हैं। यह बहुत ही गंभीर मामला है।
हमने यह विश्वास करते हुए एक आदेश पारित किया कि डॉक्टर वास्तविक प्रमाण पत्र जारी करेंगे, लेकिन ऐसा नहीं होना गंभीर है। इस मामले को कैसे रोका जाए, इस पर हम कुछ सुझाव चाहते हैं। हमें किसी स्वतंत्र एजेंसी से जांच का आदेश देना होगा। हम डॉक्टरों की इस धोखाधड़ी (fake death certificate) के खिलाफ सख्त हैं। इसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है।
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