बरेली।
फटी पुरानी किताबों की बांध लो जिल्दें।
सुना है लफ्ज कभी बेअसर नहीं होता।।
विश्व पुस्तक दिवस के मौके पर हसीब सोज बदायूंनी का यह शेर याद आ जाता है। पुस्तकें महज कागज का पुलिंदा नहीं, बल्कि भूतकाल और भविष्यकाल को वर्तमान में जोड़ने का काम करती हैं। वे संस्कृतियों और पीढ़ियों के बीच अनगिनत पुलों का निर्माण भी करती हैं। बरेली की सबसे पुरानी रचना के रूप में 11वी सदी की संस्कृत किताब का प्रमाण मिलता है।
बरेली में पुस्तकों का विधिवत प्रकाशन 1866 में मिशनरी ने शुरू किया था। इस दौरान अधिकतर धार्मिक साहित्य छापा गया। हस्तलिखित पुस्तकों का वजूद 11 शताब्दी से ही रहा है। शोधार्थी रबीअ बहार बताते हैं कि बरेली के इतिहास में कुछ जगह 11वीं शताब्दी में रचे गए एक संस्कृत महाकाव्य की चर्चा भी मिलती है। अहिच्छत्र (वर्तमान में आंवला) में जन्मे बाग्भट्ट नामक कवि ने जैन तीर्थांकर नेमिनाथ के जीवन पर आधारित नेमि निर्वाण काव्य की रचना की थी। बाग्भट्ट का जीवन काल 1074 ईसवीं से 1124 ईसवीं तक बताया जाता है।
बरेली के इतिहास में पहले जाने माने साहित्यिक व्यक्ति का नाम मिर्जा मुहम्मद रफी खान बाजिल है। मुगल बादशाह शाहजहाँ के शासनकाल में उन्हें बरेली का गवर्नर नियुक्त किया गया था। उस दौरान वर्ष 1679 में उन्होंने फारसी में एक गजल संग्रह और 90 हजार छंदों के एक महाकाव्य हमला ए हैदरी की रचना की थी। उनकी ये किताब आज भी उपलब्ध है। ये दुनिया की कुछ अनूठी किताबों में से एक है।
1820 में आई बरेली के उद्योगों पर किताब
वर्ष 1820 में बरेली कमिश्नरी में मौलवी इमादुद्दीन लेपकनी के बेटे गुलाम याह्या की फारसी भाषा में
किताब-ए-तसावीर-ए-शीशागरी व हैराह व बाईंन-ए-इतनाही नाम से किताब लिखी। बरेली की कला और कौशल पर लिखी इस किताब में जिले के 11 लघु और कुटीर उद्योगों की जानकारी दी गयी थी। यह एक दुर्लभ किताब है। इस किताब का अंग्रेजी अनुवाद बरेली के तत्कालीन मजिस्ट्रेट रोबर्ट ग्लिन ने दि इलेवन इल्लुस्ट्रेशन्स के नाम से प्रकाशित कराया था।
राज ओ न्याज ने हासिल की लोकप्रियता
रबीअ बहार बताते हैं कि खानकाह नियाज़िया के न्याज अहमद चिश्ती 1778 में बरेली आये। उन्होंने 19 साल की उम्र में एक संत और साहित्यकार के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त की। उनकी रचनाएं उर्दू और फारसी में मिलती हैं। खास तौर पर न्याज बरेलवी की किताब राज ओ न्याज खासी चर्चित है। बरेली के एक ख्यातिलब्ध चिकित्सक गुलाम इमाम की किताब मिसबाह उल मुजररेबात की चर्चा भी जरूरी है। 1813 में लिखी गयी ये किताब यूनानी चिकित्सा पध्दति पर आधारित है।
सबसे पहले छापी देवनागरी- रोमन प्राइमर
1866 के आसपास बरेली में पुस्तकों की छपाई शुरू हुई तो मिशनरी ने सब से पहली किताब देवनागरी- रोमन प्राइमर छापी। हिंदी सीखने के लिए इसे छापा गया था। जब छपाई शुरू हुई तो बरेली के हिन्दू मुस्लिम समुदाय की साहित्यिक हस्तियों ने मिलकर रुहेलखण्ड लिटरेरी सोसाइटी का गठन कर किताबों का प्रकाशन शुरू किया। इस सोसाइटी के ताराचंद शास्त्री ने स्त्री धर्म संग्रह नामक पहली पुस्तिका प्रकाशित की। ये स्त्री शिक्षा के मामले में बरेली से प्रकाशित ये पहली किताब थी। इसके बाद शिवव्रत लाल वर्मन ने अपनी प्रेस लगाई। 1888 में उनकी “
आल्हा ऊदल, हमारी माताएं और सच्ची देवियां के रूप में तीन किताबें प्रकाशित हुईं।
दुनिया भर में मशहूर हुई राधेश्याम रामायण
शोधार्थी रबीअ बहार बताते हैं कि बरेली के हिंदी लेखकों में पंडित राधेश्याम कथावाचक का नाम बहुत मशहूर हुआ। 1890 में जन्में राधेश्याम कथावाचक ने
राधेश्याम रामायण लिख नवयुग के तुलसी होने का गौरव हासिल किया। उनकी रचनाएं गद्य और पद्य दोनों में प्रकाशित हुईं। राधेश्याम भजनावली, कृष्णा अवतार, वीर अभिमन्यु, द्रौपदी स्वयंवर, मशरिकी हूर और मेरा नाटक काल उनकी कुछ खास किताबें हैं। इन्हीं के समय के लेखक पंडित भोला नाथ शर्मा की गीता, क्रिटिक ऑफ प्योर रीजन और जर्मन नाटककार और लेखक गोएथे के मशहूर दुखांत नाटक फॉस्ट के हिंदी अनुवाद को हिन्दू दर्शन के संदर्भ में पसंद किया गया। दुर्भाग्य से उनकी अधिकांश किताबें न छप पाने के कारण हस्तलिखत रूप में ही हैं।