न्यूज जंक्शन 24, हल्द्वानी। चार दिवसीय लोक आस्था का महापर्व छठ (Chhath Pooja) सोमवार यानी 8 नवंबर से शुरू हो रहा है। यह सूर्य, उषा, प्रकृति, जल, वायु और उनकी बहन छठी मइया को समर्पित है, ताकि उन्हें पृथ्वी पर जीवन की देवताओं को बहाल करने के लिए धन्यवाद और कुछ शुभकामनाएं देने का अनुरोध किया जाए। छठ (Chhath Pooja) में कोई मूर्तिपूजा शामिल नहीं है।
पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार-झारखंड में में मनाए जाने वाले इस महापर्व (Chhath Pooja) को लेकर लोग काफी उत्साहित रहते हैं। यह पर्व खासतौर पर संतान प्राप्ति और परिवार में खुशहाली की कामना को लेकर मनाया जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, षष्ठी माता संतानों की रक्षा करती हैं और उन्हें स्वस्थ और दीघार्यु बनाती हैं। इस अवसर पर सूर्यदेव की पत्नी उषा और प्रत्युषा को भी अर्घ्य देकर प्रसन्न किया जाता है। छठ व्रत (Chhath Pooja) में सूर्यदेव और षष्ठी देवी दोनों की पूजा साथ-साथ की जाती है। इस तरह ये पूजा अपने-आप में बेहद खास है।
किस दिन क्या है
हिंदू पंचांग के मुताबिक छठ पूजा (Chhath Pooja) कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से शुरू हो जाती है। यह पर्व चार दिनों तक चलता है। साल 2021 में छठ पूजा 8 नवंबर से शुरू हो रहा है। इस त्योहार का पहले दिन नहाय खाय होता है। इस दिन व्रती भोर बेला में उठते हैं और स्नान करने के बाद सूर्य पूजा के साथ व्रत की शुरुआत करते हैं। इसके बाद चना दाल के साथ कद्दू-भात (कद्दू की सब्जी और चावल) तैयार किया जाता है और इसे ही खाया जाता है। इसके साथ ही व्रती 36 घंटे के निर्जला व्रत को प्रारंभ करते हैं। नहाय खाय के साथ व्रती नियमों के साथ सात्विक जीवन जीते हैं। इस साल नहाय-खाय सोमवार को मनाया जाएगा। इसके अगले दिन यानी 9 नवंबर को खरना मनाया जाएगा, जबकि 10 नवंबर को अस्त होते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा और फिर 11 नवंबर की सुबह उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही इस पावन पर्व का समापन हो जाएगा।
छठ पूजा (Chhath Pooja) सामग्री
प्रसाद रखने के लिए बांस की दो तीन बड़ी टोकरी, बांस या पीतल के बने तीन सूप, लोटा, थाली, दूध और जल के लिए ग्लास, नए वस्त्र साड़ी-कुर्ता पजामा, चावल, लाल सिंदूर, धूप और बड़ा दीपक, पानी वाला नारियल, गन्ना जिसमें पत्ता लगा हो, सुथनी और शकरकंदी, हल्दी और अदरक का पौधा, नाशपाती और बड़ा वाला मीठा नींबू, जिसे टाब भी कहते हैं, शहद की डिब्बी, पान और साबुत सुपारी, कैराव, कपूर, कुमकुम, चन्दन, और कई तरह की मिठाई की जरूरत होती है।
इन नियमों का करें पालन
- नहाय-खाय के दिन से व्रती को साफ और नए कपड़े पहनने चाहिए।
- नहाय खाय से छठ का समापन होने तक व्रती को जमीन पर ही सोना चाहिए। व्रती जमीन पर चटाई या चादर बिछाकर सो सकते हैं।
- घर में तामसिक और मांसाहार वर्जित है। इसलिए इस दिन से पहले ही घर पर मौजूद ऐसी चीजों को बाहर कर देना चाहिए और घर को साफ-सुथरा कर देना चाहिए।
- शराब, धूम्रपान आदि न करें। किसी भी तरह की बुरी आदतों को करने से बचें।
- साफ-सफाई का विशेष ध्यान दें। पूजा की वस्तु का गंदा होना अच्छा नहीं माना जाता।
- महिलाएं माथे पर सिंदूर जरूर लगाएं। सिंदूर नाक से लेकर पूरी मांग भरने की परंपरा है।
- किसी भी वस्तु को छूने से पहले हाथ जरूरत धोएं।
छठ महापर्व शुरू होने के पीछे की कहानी
पहली कथा : छठ पर्व कैसे शुरू हुआ इसके पीछे कई कहानियां प्रचलित हैं। पुराण में छठ पूजा के पीछे की कहानी राजा प्रियंवद को लेकर है। कहते हैं राजा प्रियंवद को कोई संतान नहीं थी तब महर्षि कश्यप ने पुत्र की प्राप्ति के लिए यज्ञ कराकर प्रियंवद की पत्नी मालिनी को आहुति के लिए बनाई गई खीर दी। इससे उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई लेकिन वो पुत्र मरा हुआ पैदा हुआ। प्रियंवद पुत्र को लेकर श्मशान गए और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे। उसी वक्त भगवान की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं और उन्होंने राजा से कहा कि क्योंकि वो सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हैं, इसी कारण वो षष्ठी कहलाती हैं। उन्होंने राजा को उनकी पूजा करने और दूसरों को पूजा के लिए प्रेरित करने को कहा। राजा प्रियंवद ने पुत्र इच्छा के कारण देवी षष्ठी की व्रत किया और उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई। कहते हैं ये पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी और तभी से छठ पूजा होती है।
छठ पर्व की दूसरी कथा : राजा प्रियंवद की कथा के अलावा एक कथा राम-सीता जी से भी जुड़ी हुई है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक जब राम-सीता 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे तो रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए उन्होंने ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूर्य यज्ञ करने का फैसला लिया। पूजा के लिए उन्होंने मुग्दल ऋषि को आमंत्रित किया। मुग्दल ऋषि ने मां सीता पर गंगा जल छिड़क कर पवित्र किया और कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना करने का आदेश दिया। जिसे सीता जी ने मुग्दल ऋषि के आश्रम में रहकर छह दिनों तक सूर्यदेव भगवान की पूजा की थी।
छठ पर्व की तीसरी कथा :एक मान्यता के अनुसार छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी। इसकी शुरुआत सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्य की पूजा करके की थी। कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे और वो रोज घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते थे। सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बने। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही परंपरा प्रचलित है। छठ पर्व के बारे में एक कथा और भी है। इस कथा के मुताबिक जब पांडव अपना सारा राजपाठ जुए में हार गए तब दौपदी ने छठ व्रत रखा था। इस व्रत से उनकी मनोकामना पूरी हुई थी और पांडवों को अपना राजपाठ वापस मिल गया था। लोक परंपरा के मुताबिक सूर्य देव और छठी मईया का संबंध भाई-बहन का है। इसलिए छठ के मौके पर सूर्य की आराधना फलदायी मानी गई।
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